...

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देश...
लिए एक सपना, अकल्मंदो के मैखाने मै पहोचा एक भुला भटका देश.

डरा हुआ, सहमा हुआ, उसने पूछा किसीका सहारा.
बोला - चाहिए थोडा सहारा, बदले मै मेरे पास है एक सपना सिर्फ एक सपना.

अकलमंद तो मस्त थे अपनी ही चिलम की धुवे मै,
न समजते की वह था कोहरा, या कोई नशा.
देश को ताकते, निचोड़ लिया उसका सपना,
चिलम की तम्भाकू मै मसला, जलाया और एक सुट्टा लगाया
कुछ अलग होने का मज़ा लिए, देश का शुक्रियादा किया और लुड़क गये.

देश बेचारा, धुवा मुह पे लिए हुए, सहारा पूछता रह गया...
© omkar's