घायल
लेखक - डॉ अरूण कुमार शास्त्री
*प्रदत्त विषय/शब्द
: *घायल*
शीर्षक - तन्त्र
विधा - पद्य काव्य
घायल तन्त्र का अवसाद समझना प्रेम निःशुल्क को बकवास समझना।
ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
चलते - चलते बिना पिए बहक जाना, डगमग डगमग डगमगा जाना ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
घायल होना प्रेम में किसी के पीड़ा छलकाते जाना।
आंखों से रह - रह अश्रु बहाना ये तो मन का प्रलाप है।
इंसानों की रीत समझना,
दुःख सुख...
*प्रदत्त विषय/शब्द
: *घायल*
शीर्षक - तन्त्र
विधा - पद्य काव्य
घायल तन्त्र का अवसाद समझना प्रेम निःशुल्क को बकवास समझना।
ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
चलते - चलते बिना पिए बहक जाना, डगमग डगमग डगमगा जाना ये तो मूर्ख मनुष्य को ही सुहाता है।
घायल होना प्रेम में किसी के पीड़ा छलकाते जाना।
आंखों से रह - रह अश्रु बहाना ये तो मन का प्रलाप है।
इंसानों की रीत समझना,
दुःख सुख...