बचपन ही सुकून है
बचपन में
मंदिर की घंटियाँ
मेले के झूले
होली के रंग
दिवाली मे अपनों का संग
दोस्तों से गप्पे
दोपहर की नींद
बड़े होकर कुछ बनने का ख़्वाब
सब सुकून देता था
बस ये बड़े होकर
कुछ बन क्या गए
सुकून खो सा गया है
अब मैं मौका पाते भागता हूँ
बचपन के उन दिनों की तरफ
मंदिर में, मेले मे
होली में, दिवाली में
पुराने दोस्तों से मिलने
दोपहर ढूँढते
बड़ी मुश्किल से ग़र ये मिल भी जाते हैं
मुझे मेरा बचपन नहीं दिखता
मेरे मन का बच्चा निराश हो लौट आता है
वो बचपन सा सुकून नहीं मिलता।
© Atul Mishra
#kalammishraki
मंदिर की घंटियाँ
मेले के झूले
होली के रंग
दिवाली मे अपनों का संग
दोस्तों से गप्पे
दोपहर की नींद
बड़े होकर कुछ बनने का ख़्वाब
सब सुकून देता था
बस ये बड़े होकर
कुछ बन क्या गए
सुकून खो सा गया है
अब मैं मौका पाते भागता हूँ
बचपन के उन दिनों की तरफ
मंदिर में, मेले मे
होली में, दिवाली में
पुराने दोस्तों से मिलने
दोपहर ढूँढते
बड़ी मुश्किल से ग़र ये मिल भी जाते हैं
मुझे मेरा बचपन नहीं दिखता
मेरे मन का बच्चा निराश हो लौट आता है
वो बचपन सा सुकून नहीं मिलता।
© Atul Mishra
#kalammishraki