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एक वेशया की डोली बनी अर्थी।।🪔🪔
मैं वेशया हूं -मै हर शख्स की दुल्हन हूं,
मगर मेरी कोई डोली नहीं उठती,
सिर्फ रातें रंगीन हैं मगर सुबह दर दर भटकने पर
ही जाना होता है,
मैं किसी कि काभी नहीं हो सकती,
क्योंकि मैं सार्वजानिक हूं।।
मुझ पर किसी एक का स्वामित्व नहीं,
क्योंकि मैं जिस्मानी ताल्लुकात बनवाकर पैसे कमाती हूं,
मेरी डोली नहीं उठती जी जनाब मगर
यहां जो आते है जनाब वो अपनी औरतों के पास क्यों नहीं जाते हैं,
वो हमें नंगा करते जी,
मैं पूछती तुम मुझे नंगा करते हो,
और उन मेरी बचियो नगा करते हो,
तो तुम मर्द हो तो कैसे मर्द हो,
अगर तुझमें इतनी दम है तो जा और अपनी योनि में जाकर अपनी औरतों से अपनी हवस मिटा।।
मुझे और क्रोध ना दिला जा ,
मेरी रोति बच्चियों को अपने जाल से मुक्त कर,
वरना मैं नाश तेरा सर्वनाश कर दूंगी।।
मेरी कोई डोली नहीं होती,
क्योंकि मेरी सिर्फ बोली होती जो कागज की होती है जिसके लिए मैं खुद बोली बनकर पेश
हो जाती हूं ताकि मुझे आहार करके तूं वो मेरी उन बेटियों को छिन छिन ना करें लेकिन तेरी भूख बहुत ज़हरीली है,
उसने मेरी बच्चियों को भी नहीं छोड़ा।।
इसलिए हमारा तुम मर्द संग सिर्फ समझौता है।।
यह काभी कोई संबंध नहीं होता है,
ना ही स्तंभ हो सकता है।।
क्या होता है जब एक वेशया की डोली,
जो डोली ना होकर बोली पर बैठती,
सिर्फ इसलिए ताकि ये दरिंदे उनकी बच्चियों को बक्श दे।।
मगर वो ज़ालिम ऐसा नहीं करते वो उनके साथ
कम,
उनकी बच्चियों को प्राप्त कर छलनी कर अपनी हवस मिटाने पर गिर जाते हैं ।।
मगर जब उसी वेशया ने कहा अलविदा तो कितने ही आए?
जब वो बोली से अर्थी बनी तो कितने ही लोग आए होंगे?
एक वेशया मजबुरी उसके बलिदान की आहुतिनी कब हुई जब उसे बलिदानी होकर अपने उस रूप वैशया की शोकसाभा यानी एक वैशया की आहुतिनी बलिदानी की शोकसाभा में
आना पड़ा।। आइए देखिए उस वैशया की शोकसाभा में एक वेशया की रश्म में उपस्थित थीं क्योंकि यह उसी की रशम थी जिसमें उसकी नथ उसकी मृत्यु शरीर पर दी जा रही थी।।
एक वेशया की उस रशम को हम नथ उतारी कहते हैं।। जो उसे उसके मृत पर श्रृंगार के साथ ही वापस मिली थी जो कि उसके बैकुनडी रीढ़ा बनकर अपने अस्तित्व की आसीमता की ओर पहला कदम तथा पड़ाव था।। और इसके बाद उसके बाद वेशया की अर्थी में कौन-कौन हुआ शामिल और किसने किया अंतिम संस्कार , वेशया का आश्रय व स्थाई तथा अस्थाई रूप में
परिश्रम , वेशया का जन्म एक दोष पाप है जो किन्नर कल्याणवी मूर्ति पूजन स्मारक बन सबकी इच्छा पूर्ति बनी ताकि मनु कालक्रम में कर्म से बंधा जिससे किसी को मोक्ष ना मिले और वह कर्म बंधन में किन्नर कल्याणवी मूर्ति ही बने।।
वेशया का जन्म एक पूर्व जन्म पाप दोष है।।
वह डायन कैसे बनती है?अपना अस्तित्व स्वयं नष्ट कर तथा अपना स्वभाव, कर्म,गुण, बलिदान, मूल्य, समर्पण में ना जाकर वह आहुति बलिहारिनी होकर एक असंभव प्रेम गाथा अनन्त के होने का रहस्य एक वैशया से वो
प्यासी डायन का प्रचंड बलिका अवतार धारण कर वह बलिसंघारिका की ज्वाला की आहूति का हवन कुंड बनाती जो कि उसमें उस कर्मभोगिनी कर्मपोशित कर्मपोटली की मलिनता द्वारा श्रापित योनि के वीर्य से बने स्वाभाव, कर्म ,गुण, त्याग, बलिदान, मूल्य, समर्पण तथा सौदा सबकुछ भूलकर वह डायन कहलाई जाती है।।
उसके पास हर बिरादर का आदमी है,
चाहे राजा महाराजा हो,
चाहे चोर से गैंगस्टर हो,
पुलिस से सैनिक हो,
मंत्री से प्रधानमंत्री हो,
तो इसमें तो वो सबकी है,
तो भी वो दर दर भटक रही है,
अरे अधिकार है तुम जैसो पर,
तुम तो कुछ भी नहीं,
तुमहारा अस्तित्व नहीं,
क्योंकि तुम सब मेरे,
यानी बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका के नौकर हो,
किन्नर कल्याणवी का जन्म ही तुम्हारे मोक्ष के सबसे बड़ा श्राप है।।
क्योंकि तुम तक थे मैं चुप थी,
मगर अब बात मेरी बच्चियों की है।।
जिनका आहार तुम आए दिन करते हो।।
उनके बहते हुए लहू की कसम।
मैं तुमहारा नर्वसनाश करूंगी।।
एक वेशया के हाथों होगा कलियुग का नाश,
एक किन्नर कल्याणवी इच्छा पूर्ति श्रापम्,
प्रदानश्य।।
सा रूहम् कर्मम् नष्टानि सा गुणम् नाश्यन्यति ,
स्वयंमाह सत्व रज त्यागयनति सा रूहम् सवयमाह सरवसत्रानाम् सरवकुलाह तयागम् स्वयंमा समसत्रम् योनीयम् कर्मा बीजम् स्वयं पिनडिया दानम सा रूहम् सा स्वयं डायनकालम् प्रवेशम निशचिताह भवतानि भवन्तु दुखिना प्रयलयात्मक सा कलियुग दृश्यन्ति।।

एक वेशया की आवाज से एक वैशया किन्नर ही
डायन बनकर तुमहारा नर्वसनाश करूंगी।।
#विनाष आरंभ 🪔👙👅💋✏️🖤🥃