सच्चा
सुबह सबेरे
बैठी मैं सोच रही थी
परतों को खरोच रही थी
सच कितना सच होता है ?
अनगिनत परतों का मत होता है ?
परम सत्य क्या है
क्या रोज पूरब से उगते देखा है
या पश्चिम में ढलते देखा है
जिसका कहे सुने में है इतना बोलबाला
सत्य...
बैठी मैं सोच रही थी
परतों को खरोच रही थी
सच कितना सच होता है ?
अनगिनत परतों का मत होता है ?
परम सत्य क्या है
क्या रोज पूरब से उगते देखा है
या पश्चिम में ढलते देखा है
जिसका कहे सुने में है इतना बोलबाला
सत्य...