...

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अनमोल पल
वो सुकून भरी चाय की मीठी चुस्कियां जाने कहां हैं ?
और इन तितलियों को भी लगता जैसे फूलों से मिलना मना है,
मां के मन की बात सुने लगता जैसे बरसों गए हैं बीत,
और पापा से फरमाइशें और ज़िद्द करने की भी रीत,
भाई बहन संग हँसी ठिठोली किए एक ज़माना हुआ
सहेलियों संग अब पहले जैसी मौज मस्ती भी होती कहां,
अब तो अपनी भी हँसी मानो जैसे रूठ गई हो
और आंसू भी लगता जैसे कहीं पीछे ही छूट गई हो
रात को सोने से पहले अब ईश्वर हमें कहां याद आते हैं,
अब तो दूध छोड़ हम कॉफी से रातों की नींद भगाते हैं
सूरज का स्वागत भी अब सवेरे कहां हो पाता है,
अब चांद संग जाग कर ही तो रात गुज़र जाता है,
चिट्ठी पढ़ आती नींद मगर फोन के चैट्स चाव से पढ़े जाते हैं
अब तो सावन में भी सबको हम...