अनमोल पल
वो सुकून भरी चाय की मीठी चुस्कियां जाने कहां हैं ?
और इन तितलियों को भी लगता जैसे फूलों से मिलना मना है,
मां के मन की बात सुने लगता जैसे बरसों गए हैं बीत,
और पापा से फरमाइशें और ज़िद्द करने की भी रीत,
भाई बहन संग हँसी ठिठोली किए एक ज़माना हुआ
सहेलियों संग अब पहले जैसी मौज मस्ती भी होती कहां,
अब तो अपनी भी हँसी मानो जैसे रूठ गई हो
और आंसू भी लगता जैसे कहीं पीछे ही छूट गई हो
रात को सोने से पहले अब ईश्वर हमें कहां याद आते हैं,
अब तो दूध छोड़ हम कॉफी से रातों की नींद भगाते हैं
सूरज का स्वागत भी अब सवेरे कहां हो पाता है,
अब चांद संग जाग कर ही तो रात गुज़र जाता है,
चिट्ठी पढ़ आती नींद मगर फोन के चैट्स चाव से पढ़े जाते हैं
अब तो सावन में भी सबको हम सिर्फ़ स्टेटस पर नज़र आते हैं
दिवाली , होली जैसे त्योहार भी हम इमोजी संग मनाते हैं
अब तो तोहफ़ा भी एमेजॉन और फ्लिपकार्ट दे जाते हैं
अब तो मिठाई भी डेयरी मिल्क के आगे ना चल पाता है
फिर पुआ पूड़ी भी पिज़्ज़ा के आगे फीका पड़ जाता है
मगर ये बनावटी दुनिया बस कुछ दिन ही है भाता,
कि जब तक हमें इनसे पूरी तरह से वाकिफ नहीं करवाया जाता
जब अपनों का प्यार इंटरनेट ने अपने पास संजोया,
तब एहसास हुआ कि हमने कितना कुछ है खोया,
और बदले वो नहीं, बदले तो हम हैं इन कुछ सालों में
झेला हैं उन्होंने भी दुख मगर कभी जताया नहीं अपनी बातों से,
ये आज कुछ जज़्बाती सवाल हमारे मन ने उठाए,
चाह कर भी इन्हें आज हमेशा की तरह टाल ना पाए,
क्योंकि अपनों के प्यार ने कुछ यूं हमें बांध रखा है ,
कि खुश रह कर भी कहीं न कहीं थे हम तन्हा,
क्योंकि मां तो आज भी उतने ही प्यार से निवाला खिलाती है,
पापा भी हमारी हर फर्माइश को उतनी ही शांति से सुनते हैं,
हमारे भाई बहन संग आज भी ठहाके लगा हंसाते हमें,
और मित्र आज भी संग हमारे वक्त गुजारने को हैं तैयार,
बस हमने समझने में थोड़ी सी देरी कर दी ।
©️Smriti Trivedy
© All Rights Reserved
और इन तितलियों को भी लगता जैसे फूलों से मिलना मना है,
मां के मन की बात सुने लगता जैसे बरसों गए हैं बीत,
और पापा से फरमाइशें और ज़िद्द करने की भी रीत,
भाई बहन संग हँसी ठिठोली किए एक ज़माना हुआ
सहेलियों संग अब पहले जैसी मौज मस्ती भी होती कहां,
अब तो अपनी भी हँसी मानो जैसे रूठ गई हो
और आंसू भी लगता जैसे कहीं पीछे ही छूट गई हो
रात को सोने से पहले अब ईश्वर हमें कहां याद आते हैं,
अब तो दूध छोड़ हम कॉफी से रातों की नींद भगाते हैं
सूरज का स्वागत भी अब सवेरे कहां हो पाता है,
अब चांद संग जाग कर ही तो रात गुज़र जाता है,
चिट्ठी पढ़ आती नींद मगर फोन के चैट्स चाव से पढ़े जाते हैं
अब तो सावन में भी सबको हम सिर्फ़ स्टेटस पर नज़र आते हैं
दिवाली , होली जैसे त्योहार भी हम इमोजी संग मनाते हैं
अब तो तोहफ़ा भी एमेजॉन और फ्लिपकार्ट दे जाते हैं
अब तो मिठाई भी डेयरी मिल्क के आगे ना चल पाता है
फिर पुआ पूड़ी भी पिज़्ज़ा के आगे फीका पड़ जाता है
मगर ये बनावटी दुनिया बस कुछ दिन ही है भाता,
कि जब तक हमें इनसे पूरी तरह से वाकिफ नहीं करवाया जाता
जब अपनों का प्यार इंटरनेट ने अपने पास संजोया,
तब एहसास हुआ कि हमने कितना कुछ है खोया,
और बदले वो नहीं, बदले तो हम हैं इन कुछ सालों में
झेला हैं उन्होंने भी दुख मगर कभी जताया नहीं अपनी बातों से,
ये आज कुछ जज़्बाती सवाल हमारे मन ने उठाए,
चाह कर भी इन्हें आज हमेशा की तरह टाल ना पाए,
क्योंकि अपनों के प्यार ने कुछ यूं हमें बांध रखा है ,
कि खुश रह कर भी कहीं न कहीं थे हम तन्हा,
क्योंकि मां तो आज भी उतने ही प्यार से निवाला खिलाती है,
पापा भी हमारी हर फर्माइश को उतनी ही शांति से सुनते हैं,
हमारे भाई बहन संग आज भी ठहाके लगा हंसाते हमें,
और मित्र आज भी संग हमारे वक्त गुजारने को हैं तैयार,
बस हमने समझने में थोड़ी सी देरी कर दी ।
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