कहीं कुछ भी नहीं बदला 💐💐
कहने को तो, कहीं कुछ भी नहीं बदला
मगर देखो न, पूरी दुनिया ही बदल गयी,
मेरी नज़रों से देखो, मेरे दिल से तो पूछो
क्या खोया क्या छूटा, डोर मानों टूट गयी,
तन छूटा, मन भी टूटा, छुटा न अपार प्रेम
कैसे छूटे डोर प्रीत की, तुम संग ये जुड़ गयी,
बिछोह की लीला अपरंपार, समझे न कोय
कहते बीती ताहि बिसार दे, रात गयी सो गयी,
बैरी पिया न समझे थे, अब दुश्मन ये हिय हुआ
न समझे न भूले, प्रीत की डोर ऐसी बंध गयी !
© सुधा सिंह 💐💐