...

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#पिंजरा !!
वह आज भी लड़ रही है
उसी पैमाने से,
उस कठोर क्रूर ज़माने से!
जैसे कैद हो किसी आशियाने में
और उङना चाहती हो खुले आसमानों में।
वह कर रही है सवाल सभी से
आखिर क्यों घेर रखा है
उसको इस पिंजरे ने !
क्या क़ुसूर है उसका आखिर?
कि वह सोचती है सबके बारे मे,
और रह जाती है अकेले,
अपने ही जज़्बातों में !!
या है गुनाह उसका औरत होना?
जो मिलती है उसे ऐसी सज़ा !!

कहने को तो आज़ादी
सबको मिली है इस धरती पे,
लेकिन कठपुतलियों सी उसकी ज़िंदगी
रहती है किसी और के...