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मेरी भक्ति..
ना ललक ना चाहत ना ही दूसरों की भक्ति से ईर्ष्या..
मेरी भक्ति तो मुझे लगती है स्वयं में मिथ्या..!
हे कान्हा जब तुम चाहते हो..
तब ही होती है मेरे मन में तुम्हें पूजने की इच्छा..!
क्योंकि वो कहते हैं ना..
बिना आपके मर्जी के एक पत्ता भी नही डोल सकता..!!
ना ललक ना चाहत ना ही दूसरों की भक्ति से ईर्ष्या..
मेरी भक्ति तो मुझे लगती है स्वयं में मिथ्या..।।
© prashu✍️
मेरी भक्ति तो मुझे लगती है स्वयं में मिथ्या..!
हे कान्हा जब तुम चाहते हो..
तब ही होती है मेरे मन में तुम्हें पूजने की इच्छा..!
क्योंकि वो कहते हैं ना..
बिना आपके मर्जी के एक पत्ता भी नही डोल सकता..!!
ना ललक ना चाहत ना ही दूसरों की भक्ति से ईर्ष्या..
मेरी भक्ति तो मुझे लगती है स्वयं में मिथ्या..।।
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