...

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! इश्क़, वो भी अधूरा !
जब से देखा था उसे
तब से चाहा था उसे
जब से चाहा था उसे
तब से माँगा था उसे
जब से माँगा था उसे
तभी से माँग रहा हूँ उसे

महफूज थी वो मेरे ख़्वाबों में
मगर, जब से हकीकत में माँगा उसे
तब तक कोई और आ गया था,
उसके ख़्वाबों में!

कैसे होता मेरा ख्वाब पूरा
क्योंकि, अब
नया चेहरा था उसके ख़्वाबों में!

माना मंजिल नहीं मिली मेरे इश्क़ को
मगर, मंजिल पाना ही इश्क़ की
मंजिल तो नहीं होती
पर, मेने मंजिल माना था उसको

जब से चाहा था उसको
मेने तभी से माँगा था उसको!


© rinku005