प्रीत
प्रतिक्षा
स्थिर तन चंचल मन
अडिग प्रतिक्षा की लगन
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग
राधा ज्यों कान्हा की धुन में मगन
सिया ज्यों तकती राह रघुवर की
मैं भी दीवानी यूं मेरे प्रियवर की
खिल जाऊँ उसकी झलक भर से ऐसे
मुरझाए फूलों को मिले अमृत नीर जैसे
वो प्रीत मेरी वही मेरे प्राण
ज्यों थकन वाले दिन में सुकून भरी शाम
उसी से मेरे उमंगो के सवेरे
ज्यों तपते मरुस्थल में बादल घनेरे
स्थिर तन चंचल मन
अडिग प्रतिक्षा की लगन
© Garg sahiba
स्थिर तन चंचल मन
अडिग प्रतिक्षा की लगन
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग
राधा ज्यों कान्हा की धुन में मगन
सिया ज्यों तकती राह रघुवर की
मैं भी दीवानी यूं मेरे प्रियवर की
खिल जाऊँ उसकी झलक भर से ऐसे
मुरझाए फूलों को मिले अमृत नीर जैसे
वो प्रीत मेरी वही मेरे प्राण
ज्यों थकन वाले दिन में सुकून भरी शाम
उसी से मेरे उमंगो के सवेरे
ज्यों तपते मरुस्थल में बादल घनेरे
स्थिर तन चंचल मन
अडिग प्रतिक्षा की लगन
© Garg sahiba