कल जब न चाहकर तेरे शहर का सफर हुआ
कल जब न चाहकर तेरे शहर का सफर हुआ
आँखों से आसूं का बे तहाषा गुज़र हुआ
मैं अपनी तड़प का तुझे हवाला क्या दूँ
मेरी नज़रों से ओझल फिर हर मंज़र हुआ
अफ़सोस के राह मिली भी हमें गर मंज़िल...
आँखों से आसूं का बे तहाषा गुज़र हुआ
मैं अपनी तड़प का तुझे हवाला क्या दूँ
मेरी नज़रों से ओझल फिर हर मंज़र हुआ
अफ़सोस के राह मिली भी हमें गर मंज़िल...