...

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अधूरे
नींद अधूरी ख़्वाब अधूरे, ख़्वाबों के मेहराब अधूरे
कल-कल करता जीवन बहता, पर जीवन के आब अधूरे
यही समय है पूरा कर लो, जो चाहो मुठ्ठी में भर लो
फिर आगे का पता किसे है, कितनों के घर-बार अधूरे
प्रांतर बनकर जियो नहीं तुम, घुटकर अमृत पियो नहीं तुम
मुक्त बेड़ियों से बेहतर हैं, अपने मन के घाव अधूरे
कैसा रस्ता, कैसी राहें, थक करके खुब भर लो आहें
मौके के जाने से बेहतर, व्यथित ह्रदय के भाव अधूरे
देख-देख कर लोगों को, ये बदल रहे जो फैशन तुम
बदल सको तो ख़ुद को बदलो, ब्रह्म अंश के भाग अधूरे
फैल रही हर तरफ तबाही, शोषणकारी मद में है
भूल रहा इंसान आज क्यों, हम ईश्वर की जद में है
मानवता ने मानवता को घूंघट में ढक रक्खा है
देखो कब तक चक्र सुदर्शन मर्यादा की हद में है
काल समय है कब आ जाए, उससे पहले कुछ कर लो
वरना जाने कितनों के ही, महलों में भी नाम अधूरे...
© Er. Shiv Prakash Tiwari