...

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गुस्ताखियां
मैं रात की तरह वो ख़्वाब बुनू
जो तेरे साए के साथ चलू

मैं ख़ामोश सा अपने जज़्बात छुपाए हुए
तुझसे नजर यूं बचाए हुए

हां नादान हूं अपने इन अल्फाजो से
तुझसे ना कह पाने की हैं गुस्ताखियां

तेरे साय से सिमट कर मैं यूं ही रह जाऊं
हां ये गुस्ताखियां मैं बार बार करु

तुझसे अलग ना तुझसे जुदा
मैं रहूं सदा बनके तेरा

माना मेरी हैं कुछ बाते जो तुम्हे चुभी
पर वादा है ये गुस्ताखियां अब ना होंगी कभी

तू सुकून ए चाहत है जज्बातों का वो कहर है
इश्क़ की आदत वो रूह ए तड़प है

मैं लिखूं अपने जज़्बात तेरे इश्क़ की किताब में
मैं करु वो गुस्ताखियां तेरे हुस्न ए शबाब में

तू राहत तू इबादत तू खुदा तू संसार
चाहत की वो लहर सी जो मुझमें तू उतरी

मैं डूब जाऊं इन निगाहों में तेरे
कि ये गुस्ताखियां मैं बार बार करु