...

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दिल...
तुम्हें दरक़ार लफ़्ज़ों की और मुझे कहना नहीं आता,
दिल करता है चुपचाप बातें, उसे जताना नहीं आता।।

है इल्म भी उसे ख़ामोशी से इश्क़ में ख़लल पड़ता है,
दिल समेटता है चुपचाप यादें, उसे बताना नहीं आता।।

तुम्हारी ख़ुशी में ही तो, उसकी ज़िंदगी मिला करती है,
दिल निभाता है चुपचाप वादें, उसे फसाना नहीं आता।।

है तुम्हारी ज़रूरत का ख़याल, जाने किससे डरा फिरे,
दिल सँवारता है चुपचाप नाते, उसे मनाना नहीं आता।।

तुम्हारे ग़म की आँधी, उसका भी सुकूँ तबाह करती है,
दिल ढँकता है चुपचाप चोटें, उसे दिखाना नहीं आता।।
-संगीता पाटीदार

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