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प्यार,इश्क़ और मोहब्बत
क्यूंँ रह जाता है हर रिश्ता देह की ऊपरी तह तक
मैं खोलूंँ कौन सा बूहा जो कोई रूह तक उतरे
ज़माने भर को क्यूंँ पड़ता है अज़माना मोहब्बत में
वो पहली बार का ही प्यार क्यूंँ न रूह तक उतरे
तड़प ये कैसी है मन में कसक बन कर के जो उठे
दिलासा खुदको जो भी दूं न जाकर रूह तक उतरे
पुकारते इश्क इश्क इश्क इन्तेहा हो चली अब तो
तवक्को न रही दिल को कि कोई रूह तक उतरे
लगाकर सीने से मुझको आ भर कुछ यूंँ तू बाहों में
छुअन जिसकी मेरे साथी जो आकर रूह तक उतरे
मैं खोलूंँ कौन सा बूहा जो कोई रूह तक उतरे
ज़माने भर को क्यूंँ पड़ता है अज़माना मोहब्बत में
वो पहली बार का ही प्यार क्यूंँ न रूह तक उतरे
तड़प ये कैसी है मन में कसक बन कर के जो उठे
दिलासा खुदको जो भी दूं न जाकर रूह तक उतरे
पुकारते इश्क इश्क इश्क इन्तेहा हो चली अब तो
तवक्को न रही दिल को कि कोई रूह तक उतरे
लगाकर सीने से मुझको आ भर कुछ यूंँ तू बाहों में
छुअन जिसकी मेरे साथी जो आकर रूह तक उतरे
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