समर्पण
अब कुछ किस्सें यूँ ही, अधूरी छोड़नी होगी,
गजल आधी लिखी, आधी अधूरी छोड़नी होगी।
अंधेरो में सफर अक्सर, अकेले ही की जाती है,
किसी के साथ चलने की, उम्मीदें छोड़नी होगी।।
ये जो कसमें थे वादे थें, साथ चलने की राहों में,
मोङ आया है ऐसा कि, वो राहें छोङनी होगी।
चाहा जिसको मुद्दतों में, हां भूलना मुश्किल है पर ऐ 'दीप',
यूँ उनको चाहते रहने की, वो चाहें छोङनी होगी।।
#dying4her
©AK47
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गजल आधी लिखी, आधी अधूरी छोड़नी होगी।
अंधेरो में सफर अक्सर, अकेले ही की जाती है,
किसी के साथ चलने की, उम्मीदें छोड़नी होगी।।
ये जो कसमें थे वादे थें, साथ चलने की राहों में,
मोङ आया है ऐसा कि, वो राहें छोङनी होगी।
चाहा जिसको मुद्दतों में, हां भूलना मुश्किल है पर ऐ 'दीप',
यूँ उनको चाहते रहने की, वो चाहें छोङनी होगी।।
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