कितने दिनों से कुछ लिखा नही ...
क्या सपना देखना गुनाह है
क्या खुद से ज्यादा किसी और को चाहना गुनाह है
अगर गुनाह हे तो हम हे गुनेहगार
किसी की चाहत में हम हे कुर्बान
हसी में खो जाना आंसू में पिघल जाना
दर्द को सीने में दबाकर
उसकी खुशी में मुस्कुराना
अगर हे गुनाह तो हम हे गुनेहगार
# एक गुनाह
मां की आंसू ना देख पाना
पापा की अपमान ना सेहे...
क्या खुद से ज्यादा किसी और को चाहना गुनाह है
अगर गुनाह हे तो हम हे गुनेहगार
किसी की चाहत में हम हे कुर्बान
हसी में खो जाना आंसू में पिघल जाना
दर्द को सीने में दबाकर
उसकी खुशी में मुस्कुराना
अगर हे गुनाह तो हम हे गुनेहगार
# एक गुनाह
मां की आंसू ना देख पाना
पापा की अपमान ना सेहे...