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जिंदगी
जिंदगी
जिंदगी ना जाने क्या क्या दिखाती है,
हर मोड़ पर कुछ नया सिखाती है ।
कहीं किसी को ऊँचे आसमान पर ले जाती है,
तो कहीं किसी को नीचे की राह दिखाती है ।
किसी की थाली में खाने का भंडार है,
तो कहीं कोई दो वक्त का खाना खाने में भी लाचार है।
कहीं कोई महँगे कपड़े पहन सके,
तो कहीं कोई अपना तन भी ना ढक सके।
जिंदगी क्या तू उनसे नाराज़ है,
जो कभी उठा नहीं पाते अपने लिए आवाज़ है।
थोड़ा रेहम उनपर भी कर,
वो भी खड़े हैं तेरे दर पर।
आसान थोड़ा बन तू उनके लिए,
वो भी पा सके ख़ुश जीवन अपने बच्चों के लिए ।
जिंदगी अपनी रफ्तार थोड़ी धीमी कर,
वो भी चल सके तेरे संग कदम मिलाकर ।
क्यो तू उनको दुःख यू देती है ,
उनके घर में भी तो एक बेटी है ।
जिंदगी थोड़ा रेहम कर,
उनका भी हक है खुशियों पर।