...

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pta na chala
यूँ तो हर रोज़ गुजरती हूं उस रास्ते से,
आज तुझे वहाँ देख वो राहें कब मंज़िल बन गयी,
पता न चला।
बेवक़्त बेवजह अब आना जाना है उस और,
यूँ तो बेपरवाह चलती हूँ हर कहीं,
मग़र अब धड़कनें बढ़ जाती है, उन राहों पर, जाने क्यूँ?
बेखौफ सा मेरा रहना, अब नजर नहीं किसी को आता,
किताबों से मोहब्बत थी जिसे,
कब आईने से इश्क़ कर बैठी,
वो कागज के टुकड़े बिखेरने वाली,
कब संवरना सीख गयी।
पता न चला।
बेपरवाह पंछी जैसे रहने वाला दिल,
कब तेरे ख्यालों में डूबने लगा,
पता न चला।