जानती हूं में
जानती हूं में की कितनी साहसी हो तुम
दर्द छुपाने में अच्छी खासी हो तुम ..
जानती हूं में की काटो से चुभ रही हो तुम
पर गुलाब सी खिल भी तो रही हो तुम
जानती हूं कभी कभी अकेला सा महसूस करती हो तुम
पर एक बात बोलूं.., अकेली ही सौ के बराबर हो तुम
जानती हूं की गलतियां कुछ तुमसे भी हुई हैं
पर उन गलतियों से सीख कर आगे भी तो बढ़ रही हो तुम
जानती हूं की ये वक़्त तुमसे नाराज़ है
पर इसी वक़्त में छुपे तुम्हारी हर खुशियों के राज़ हैं
जानती हूं की दिल टूटा है
शायद तुमसे कोई छूटा है
पर सब्र करो... किस्मत की योजनाओं की कद्र करो...
जो गया वो तुम्हारा था ही नहीं
और जो आएगा वो किसी और का कभी हुआ ही नही..
जानती हूं एक लड़की हो तुम
इसीलिए हर परिस्तिथि से डट कर लड़ती हो तुम
जानती हूं जीत का दूसरा नाम हो तुम
और दुखो का दुखद काल हो तुम
जानती हूं एक लड़की हो तुम...
पर कुदरत की लिखी हुई सबसे खूबसूरत पंक्ति हो तुम...
© Gallant