...

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ख़ुद से भी झूठ बोलें...
दर्द की जब तीखी कोई लहर उठे!
वक़्त का बेज़ा सा कोई कहर उठे!!

कहदो एक बार हँस कर, सब ठीक है!
संभल ज़रा दिल,बस कर,सब ठीक है!!

तपती तेज़ जेठ दुपहरी से रिश्ते हैं ये!
आग... कभी पानी बरसते रिश्ते हैं ये!!

अपने के हठ के आगे,न अब हठ कर!
कभी करीब़,कभी मिल, दूरी रखकर!!

आईनोंको कहिए ज़रादेर खामोश़ रहें!
सही ग़लत के फेरमें न यूँ मदहोश रहें!!

अपनी आंखो में देखिए अक्स़ उनका!
आसमां में जुड़े,जमींपे भी गुलपोश रहें!!

ख़ुदको भरमाइए,कि झूठभी सच लगे!
झूठ के हाथों में भी...सच, सच ही रहे!!

दीजिए ढील मन को कि सब ठीक है!
ग्रहण लगे न अपनेपन को,सब ठीकहै!!