ग़ज़ल- बदनाम
वो दूर हैं हमसे कि हम बदनाम बहुत हैं
कौन बताए कि हम पर झूठे इल्ज़ाम बहुत हैं
उन्होंने ज़िक्र न किया कभी तो क्या हुआ
समझने को तो उन आंखों का पैगाम बहुत है
छोड़ने को तो छोड़ देते हम सारे ऐब अपने
उनकी अदालत में ज़मानत के दाम...
कौन बताए कि हम पर झूठे इल्ज़ाम बहुत हैं
उन्होंने ज़िक्र न किया कभी तो क्या हुआ
समझने को तो उन आंखों का पैगाम बहुत है
छोड़ने को तो छोड़ देते हम सारे ऐब अपने
उनकी अदालत में ज़मानत के दाम...