...

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साथ बस इक जनम का
नफरत हो या हो मोहब्बत
इसी जन्म तक याद रहेंगे

कुछ तुम भी सह लो कुछ हम सहे
मरते तक तो कम से कम साथ रहेंगे

टूट जाते हैं रिश्ते अक्सर नाजूक मोड़ पर
छूट जाते हैं पीछे अपने और वजूद उनका
अक़्सर खुदगर्जी और ग़लतफ़हमी की दौड़ पर

जिंदगी का भरोसा नहीं फिर लगे हैं
एक दूसरे को नीचा गिराने की होड़ पर

जो सुन कर भी अनुसना कर जाए
उसे भला और क्या कहेंगे

नफरत हो या हो मोहब्बत
इसी जन्म तक याद रहेंगें।


© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮