...

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कभी सोचा ना था
कमाने कि चाह में मैं
जब घर से बेगाना हुआ
दिल पर पत्थर रख,
आंखों में आसूं लिए मंजिल कि खोज में रवाना हुआ...

कभी सोचा ना था कि
कमाई इस कदर रुलाएगी
जब थक-हार कर याद अपने
गांव की गलियों कि आएगी...

कभी सोचा ना था कि
बचपन के सपने जीवन की
इस कदर रगड़-पट्टी करवाएंगे
सांझ होते होते पांव में छाले और आंख में आंसू आएंगे...

कभी सोचा ना था कि
शहर की तंग गलियों में जब
भटकते-भटकते कमीज पसीने से भीग जाएगी
थक-हार कर याद गांव कि शुद्ध हवा की आएगी...

कभी सोचा ना था कि
यह...