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एक प्रार्थना
एक प्रार्थना

अस्तित्व पर उनके प्रहार करों न
जीवन में ये अपराध करों न
कण-कण में जो रमें है बंधु, उनसे खुद दूर करों न।।

काल्पनिक है यदि कथा भी उनकी
तुम आदर्श स्वीकार करों न
कौन कहता उनकी पूजा करों तुम, पर उनके नाम का जिक्र करों न।।

वक्त बदल रहा धीरे-धीरे
मूल्यांकन स्थिति का थोड़ा करों न
समाप्त हो रही दया-धर्म अब, अपने ईश्वर का थोड़ा ध्यान करों न।।

सदा नैतिकता की परीक्षा होती
शांति से अपने काम करों न
धूर्त, चालाक सदा बच निकलते, स्वार्थ का उनको प्रतीक कहो न।।

अधर्म की सूली सरल ही चढ़ते
इस बात पर अमल करों न
कुंठा ग्रस्त हो रहा है मानव, स्वयं को बदलने का प्रयास करो न।।

सहनशीलता खो रही सबकी
वाणी को अपनी काबू करो न
काम, क्रोध में हो रहे अंधे, हर किसी पर विश्वास करो न।।
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