...

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तलाश है...
खोज़ रहा हूं मै खुद में खुद को
ढूंढ रहा हूं मै सबमें उस को,
ना जाने कैसा इश्क़ कर लिया मैंने,
अब तक उस ही ढूंढ रहा हूं हर पल

पूछता हूं कई दफा मैं खुद से ही
क्यूं है मुझे इतना इश्क़ सिर्फ उससे,
यूं ही ढूड़ेगा उसको हर किसी में,
तो कैसे खोजेगा तू खुद में खुद को..

कब तक यूं ही राह निहरेगा तू उसकी
आखिर कब खत्म करेगा तलाश उसकी
कब तक नहीं चलेगा तू नए रास्ते पर
आखिर कभी तो बढ़ेगा ना किसी के संग।

क्या खबर पूरी हो चुकी हो तलाश तेरी,
हो अनजान तू जारी रखो हो तलाश अपनी,
वक़्त करवट बदल चुका है तेरी,
बस पहचान ले अपनी तलाश को तू ही..



© Inceptive Lines