दुनिया के झमेलों में
दुनियां के झमेलों में खोया था मैं,
रोज़मर्रा की भागदौड़ में सोया था मैं।
जब नौकरी गई, शांति गई,
लक्ष्य हुए धुंधले,
सबकुछ हुआ शून्य,
सपने भी हुए खोखले।
सोचा था, परिवार, दोस्त बनेंगे सहारा,
पर सब तो अपने आप में हीं थे व्यस्त,
कौन आता मेरे पास? साथ देने हमारा।
जब छोड़ दीं मैंने सारी उम्मीदें, सारे बंधन,
तब मैंने ये समझा, तब...
रोज़मर्रा की भागदौड़ में सोया था मैं।
जब नौकरी गई, शांति गई,
लक्ष्य हुए धुंधले,
सबकुछ हुआ शून्य,
सपने भी हुए खोखले।
सोचा था, परिवार, दोस्त बनेंगे सहारा,
पर सब तो अपने आप में हीं थे व्यस्त,
कौन आता मेरे पास? साथ देने हमारा।
जब छोड़ दीं मैंने सारी उम्मीदें, सारे बंधन,
तब मैंने ये समझा, तब...