...

7 views

होड़
सोचती मैं रहीं क्या- करूं क्या - करूं ,
कुछ ना मिला मुझको यूं सोच कर !

मैं गुम थी किसी बड़े खयाल में ,
वो खयाल ही मेरा कहिं घूम हो गया !

मुझे कुछ ना दिया जिंदगी ने मेरी ,
जो दिया वो भी सब मैं गवांती गई !

दुआ भी मेरी बेअसर है हुई ,
मांगती भी क्या खाली झोली पड़ी !

प्रतिभा नहीं अब किसी विषय में मुझे ,
जो है भी वो सब हैं अधूरी पड़ी !

शब्द कड़वे हुए कब पता ना चला ,
छोड़ दिया सब ने अखिर अकेला मुझे !

ठिकाना मेरा अब कहीं ना रहा ,
खड़ी हूँ में किसी भीड़ में !

मैं चुप हो गई उसके उस शोर से ,
आवाज मेरी मानो थी जा चुकी !

लगा जोर का फिर धक्का मुझे ,
गिरी जमीन पर मैं बड़ी जोर से !

वो बड़ने लगे आगे उपर से मेरे ,
पत्थर समझ मुझे कुचलने लगे !

मैं धसने लगी, भारी पैरों से उनके ,
था वो अंत मेरा ना थी अर्थी कहिं !

जब वो लोग हटे वहां कोई ना मिला..
ना था पत्थर कोई जिसे कुचला गया ,
ना सबूत था वहां किसी जीव का !

अंतिम बार जब साँस मेने ली ,
कोई रोशनी मुझे ना दिखी !

ये देख कर मेरे जब आसु गिरे ,
वो वही कहिं थे सूखे पड़े !

© @mrinalini_rana