क्या जीना इसी का नाम है???
कितनी अजीब सी बात है ना !
घड़ी हम सबके पास ,
परंतु समय किसी के पास नहीं ।
परिवार हम सबके पास है ,
परंतु उसकी अहमियत किसी के पास नहीं।
facebook , instagram जैसे सोशल मीडिया पर हमारे हजारों दोस्त हैं
परंतु असलियत में दोस्ती किसी के पास नहीं।
पैसा हम सबके पास है
परंतु संतुष्टि किसी के पास नहीं ।
आज के इस दौर में हम मानव से दानव बनते जा रहें हैं और हम कभी इस बात की गहराई में जाते ही नहीं या शायद जाना ही नहीं चाहते। हम अपने और अपनों के लिए पूरी जिंदगी भागदौड में निकाल देते हैं लकिन ये कभी नहीं सोचते कि जिंदगी के किसी मोड़ में हमें कुछ हो जाए तो ऐसी भागदौड वाली जिंदगी का क्या फायदा क्या फायदा अपनी और अपनों की ख़ुशी के लिए जिंदगी भर परेशान रह कर । क्या फायदा ऐसे सुख का जिसे हम भोग ही ना पाए।
हम आज एक ऐसे दौर में जी रहें हैं जहाँ किसी को किसी की अहमियत नहीं । अहमियत है तो बस पैसों की। हमें कभी खुद के लिए समय निकाल कर ये जरूर सोचना चाहिए की क्या " जीना इसी का नाम है।" ऐसे हम क्या कभी खुश रह पाएंगे क्या कभी हम चिंता मुक्त रह पाएंगे।
ऐ मानव जरा अपनी सोच
कर फ़तेह हर मुक़ाम तू।
कहीं पड ना जाए अकेला
खुशियाँ की इस तलाश में।
जिंदगी के इस भागदौड में
कर अपनी पहचान तू।
ऐ मानव जरा अपनी सोच
कर फ़तेह हर मुक़ाम तू।
© All Rights Reserved
घड़ी हम सबके पास ,
परंतु समय किसी के पास नहीं ।
परिवार हम सबके पास है ,
परंतु उसकी अहमियत किसी के पास नहीं।
facebook , instagram जैसे सोशल मीडिया पर हमारे हजारों दोस्त हैं
परंतु असलियत में दोस्ती किसी के पास नहीं।
पैसा हम सबके पास है
परंतु संतुष्टि किसी के पास नहीं ।
आज के इस दौर में हम मानव से दानव बनते जा रहें हैं और हम कभी इस बात की गहराई में जाते ही नहीं या शायद जाना ही नहीं चाहते। हम अपने और अपनों के लिए पूरी जिंदगी भागदौड में निकाल देते हैं लकिन ये कभी नहीं सोचते कि जिंदगी के किसी मोड़ में हमें कुछ हो जाए तो ऐसी भागदौड वाली जिंदगी का क्या फायदा क्या फायदा अपनी और अपनों की ख़ुशी के लिए जिंदगी भर परेशान रह कर । क्या फायदा ऐसे सुख का जिसे हम भोग ही ना पाए।
हम आज एक ऐसे दौर में जी रहें हैं जहाँ किसी को किसी की अहमियत नहीं । अहमियत है तो बस पैसों की। हमें कभी खुद के लिए समय निकाल कर ये जरूर सोचना चाहिए की क्या " जीना इसी का नाम है।" ऐसे हम क्या कभी खुश रह पाएंगे क्या कभी हम चिंता मुक्त रह पाएंगे।
ऐ मानव जरा अपनी सोच
कर फ़तेह हर मुक़ाम तू।
कहीं पड ना जाए अकेला
खुशियाँ की इस तलाश में।
जिंदगी के इस भागदौड में
कर अपनी पहचान तू।
ऐ मानव जरा अपनी सोच
कर फ़तेह हर मुक़ाम तू।
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