कुछ न कहते मर्द
कितना कुछ सह कर भी,चुप रह जाते है मर्द,
सबकी नज़रों में तौले जाते,सहते सर का दर्द।
रिश्तों के शूल से होते घायल,सहते जख्मों के दर्द,
रिश्तों के बताओ और कितने,मर्द उतारे अब कर्ज़।
सबकी इच्छा पूरी करना, है उनका जीवन धर्म,
अपनी इच्छा का त्याग करना,यही उनका नित्य कर्म।
मांगते रहते सब उनसे,कोई न समझे उनका मर्म,
इच्छाओं को दफन करते,सहते रहते उनके दर्द।
सभी पक्षों को सुनते...
सबकी नज़रों में तौले जाते,सहते सर का दर्द।
रिश्तों के शूल से होते घायल,सहते जख्मों के दर्द,
रिश्तों के बताओ और कितने,मर्द उतारे अब कर्ज़।
सबकी इच्छा पूरी करना, है उनका जीवन धर्म,
अपनी इच्छा का त्याग करना,यही उनका नित्य कर्म।
मांगते रहते सब उनसे,कोई न समझे उनका मर्म,
इच्छाओं को दफन करते,सहते रहते उनके दर्द।
सभी पक्षों को सुनते...