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एक तेरी याद है जो मौत सा है .....
दौड़ रहे दिन व रात,
चल रहे घड़ी सुबह शाम,
और एक तेरी याद है,
जो जाती ही नहीं।

तेरी मोहब्बत में मरी नहीं,
यहीं है जो मुझमें घुली नहीं,
और ये कहना की मैं जिंदा हूं !
ये बात भी पूरी तरह सही नहीं।

तू जो सांसों से रूह तक में बसा है।
क्या बताऊं ? बड़ा घूटन सा होता है।
तेरे न होने के हकीकत से वाकिफ मैं!
कई दफा खुद को मौत का नज़ारा दिखाया है।

जब जब तुझसे नफरत करना चाहा,
वो पल मुझे जिंदगी से दूर,
मौत के करीब ले गया ।

एक सिर्फ़ तेरा ख्याल है,
जो मुझे जीने नहीं देता।
और एक मेरी मां का प्यार है,
जो मुझे मरने नहीं देता।

अपनों की फ़िक्र और
पापा के नजरों में कई सारे अरमां है ।
जो मेरी खुद की जान लेने नहीं देता।
और यहीं मलाल है की चाह कर भी मैं,
वो नहीं कर पाती जिसकी मुझे तलब है।

इस बीच में मेरा ज़िंदगी से एक ही सवाल है!
अगर है इतनी बेवफ़ा तू,
फिर मुझसे इतनी वफ़ा क्यों?
मौत एक मात्र सच है,
फिर अबतक इससे मैं अछूत क्यों?

बाकी जिस दिन मैं मतलबी हुई।
वो दिन मेरी जिंदगी का आखिरी लम्हा होगा।
और गर मैं मर गई मोहब्बत में,
तो खुदा सिर्फ इतनी अरदास है,
सब संभाल लेना मेरे बाद की
मेरे परिवार का कोई नहीं रखने वाला ध्यान है।

सिर्फ़ इतनी चाहत है की
जो आनी हो मेरे अपनों पर,
वो सारी बलाएं मुझपे आए।
और किसी को मेरी बद्दुआ नहीं लगेगी,
क्युकी मुझमें सिर्फ सबके लिए दुआ है।
बाकी मेरी मौत का पता नहीं,
किस किस पर भारी पड़ेगी।

© ehsaas_e_jazbaat