रूठी रूठी ज़िन्दगी
रूठी रूठी ज़िन्दगी तुझे मनाऊँ कैसे,
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी तुझे बहलाऊँ कैसे।
दर्द बे-हिसाब दिया तूने,
तू ही बता इसका हिसाब लगाऊँ कैसे।
अब तो नासूर बन चूके हैं ज़ख़्म,
इस रिसते ज़ख़्म को छुपाऊँ कैसे।
तू ही बता ऐ ग़म-ए-ज़िन्दगी,
अपने ज़ख़्मी हाथों से इसे सहलाऊँ कैसे।
बरदाश्त से बाहर हो गया है दर्द,
तू ही बता ऐ रूठी रूठी ज़िन्दगी तुझे समझाऊँ कैसे।
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी तुझे बहलाऊँ कैसे।
दर्द बे-हिसाब दिया तूने,
तू ही बता इसका हिसाब लगाऊँ कैसे।
अब तो नासूर बन चूके हैं ज़ख़्म,
इस रिसते ज़ख़्म को छुपाऊँ कैसे।
तू ही बता ऐ ग़म-ए-ज़िन्दगी,
अपने ज़ख़्मी हाथों से इसे सहलाऊँ कैसे।
बरदाश्त से बाहर हो गया है दर्द,
तू ही बता ऐ रूठी रूठी ज़िन्दगी तुझे समझाऊँ कैसे।