...

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खिलौने टूट जाते है।
खिलौना टूट जाता है।
बच्चे रो पड़ते है
फिर दूसरे खिलोने दी जाती है
लेकिन बच्चे, वही खेलोने के लिए
फिर रो पड़ते है,
टूटे खिलोने जुड़ने का हर कोशिश
करते है, फिर रूट के रो पड़ते है
रोना बंद करने के लिए,
कबि कबि तप्पड़ बी खा लेते है।
कुछ समय रोना बन्द तो होता है,
लेकिन मन का रोना उससे भी
ज्यादा, आसमान छूने चिक होता है।
क्योंकि कोई खिलौना टूटे खिलौना का
बराबर तो नही है, वो तो बचपन से ही
मन मे अटूट रहता है।
सिर्फ खिलोने के लिए इतना सब हलचल है तो,
क्या वो खिलोने के लिए था ? या खिलौना से
जुड़े अपना भावनो से था?
अगर खिलोने के लिए, इतने हलचल होते
दिलों में, फिर दिल टूटने पे कितने व्यतीत होगा,
हम कैसे ना रो पाए, कैसे समझाये मासूम दिल को,
बचपन का खिलौना अबीबी याद सताती है,
क्या पता, दिल को बी खिलौन समझते होंगे, इस दुनिया मे।

© ಸಾगR

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