...

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उपले सा दर्पण मेरा
#दर्पणप्रतिबिंब

उपले उठाते,
आज साहसा ही नजर पड़ी मेरी,
दर्पण में,
ना जाने कहां से आ गया ये,
आईने का एक टुकड़ा,
मेरे उपले के ढेरो में,
अनजाने में,
हाथ छन्नी कर गया,
वक्त कहां है मुझे,
रूप निहारने का,
या सच कहूं तो,
इतनी खुशी और चैन कहा जो,
हिया में ये ख्याल आए,
मैं तो बेचैन हूं,
बहुत,
अपनी गुमशुदी से,
समय के कुछ फेर से,
भुल सी गई थी ये खबर कि,
मैं अपने खोज में निकली थी,
फिर ना जाने कहां से,
ये लिंग की टिप्पणी आई,
और घर की जिम्मेदारियों के साथ,
साझेदारी कर,
मुझे बेवकूफ बना चली,
पर आज,
जब देखा मैंने खुद को,
शीशे में,
तो अहसास हुआ कि मैं,
ठोस और तरल के विकारों के,
उस अवस्था में हूं,
जहां सब कुछ नया सा है,
अंत में,
कुछ बहुत अलग सा होगा,
पर मैं तो,
अपने स्थिरता को ही ना समझ पाई थी,
तो कैसे भुल गई,
मैं अपने आप को,
कितनी थक गई हूं मैं,
फिर भी,
मेरी एक छवी अभी भी कही,
मेरे पीछे खड़ी,
मुस्कुरा रही है,
जैसे बुला रही हो मुझे,
छोड़,
पोंछ ले आंसू,
अभी भी देर नहीं हुई,
आजा जंग में,
मैंने हाथों में उठाए उपले,
फेंके,
और भाग खड़ी हुई,
खुद को निखारने और संवारने में,
एक बार फिर से,
अपनी तलाश में...
© --Amrita

#writopoem
#In search of myself...🍂