हा मैं मजदूर बहुत मजबुर हूं
मैं लक-लकाती भट्टी में तपकर
अपना ही खून पसीना पी कर
तैयार हुआ वो लोहा हूँ
जो पाषाण फोड़ महल गढ़े
जर -जर भवनों को तोड़
फिर नव निर्माण करे
सुख भर औरों के जीवन में
खुद का जीवन बर्बाद करे
क्या बताऊ
मैं कितना अभागा इंशन हूँ
की अपने सपने समझ
मैं गाँव से...