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मन जागे तभी विवेक जगता है
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
मन की गति कोई सरलता से समझ ना पाया
हर ओर चंचल मन ,चंचल मन ही छाया
जो मन को भा जाये ,वही काम हर बार करता है
पाप-पुण्य के चक्र में खुद को ये व्यस्त रखता है
क्या सही क्या गलत ,ये सबका अंतर्मन जरूर कहता है
फिर भी उसकी आवाज़ को अनसुना कर ये
चाल चलता है
हो जहाँ स्वयम का हित पहले वही दौड़ता है
पर-हित की बातें भला कोई कहाँ सोचता है
सारी ज़िन्दगी का बोझ ये मन अंत तक साथ ढोता है
हो जब इसे अपराध-बोध ,तब मृत्यु का समय करीब होता है
अपने मन के संकल्प-विकल्प साथ लिए ये
'अनिता 'हर जन्म रवाना होता है
मन की गति ,केवल ब्रह्मज्ञानी जाने ,समझे