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फिर मिलेंगे
ज़िम्मेदारियों और हर फ़र्ज़ को निभाकर,
तक़दीर के दिए इन लम्हों को गुज़ारकर,
रूह से जिस्म रूपी लिबास को उतारकर,
वहाँ दूर कहीं फिर मिलेंगे कभी तुमसे हम,
सनम! तुम्हारी कसम... हाँ तुम्हारी कसम।
हर गिला- ओ- शिकवा को यहीं पर भुलाकर,
तुम्हारे तस्वीरों को अपने पलकों में बसाकर,
मिलने की ख्वाहिश को इस दिल में दबाकर,
बाहें फैलाएं वही तुम्हारा इंतज़ार करेंगे हम,
सनम! तुम्हारी कसम... हाँ तुम्हारी कसम।
उस ख़ुदा से वहां, दोबारा मुकद्दर लिखवाकर,
हाथों में तुम्हारे नाम की ही लकीरें खिंचवाकर,
मोहब्बत में मिलन की तक़दीर को बनवाकर,
फिर से जन्म लेकर दोबारा तुमसे मिलेंगे हम,
सनम! तुम्हारी कसम... हां तुम्हारी कसम।
©हेमा
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