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सवाल जिदंगी का
कुछ सवाल यू उठ जाते है
जिनकी अभी समझ भी नहीं थी
कुछ बातें यू घर कर जाती है
जिनकी अभी जरूरत भी नहीं थी
क्या सोचूँ मैं इस पणाव पर
कुछ कमी है मुझमें या फिर
किसमत को बेरूखी है मुझसे
यू तो मैं इतनी समझदार नहीं लगती
जिदंगी कि इन पहेलियों को
पलभर में सुलझा लू
और शांत चित से
जिदंगी व्यतित कर सकूँ
पर फिर भी इस सवाल में
कूछ आशा है कल की...
जिनकी अभी समझ भी नहीं थी
कुछ बातें यू घर कर जाती है
जिनकी अभी जरूरत भी नहीं थी
क्या सोचूँ मैं इस पणाव पर
कुछ कमी है मुझमें या फिर
किसमत को बेरूखी है मुझसे
यू तो मैं इतनी समझदार नहीं लगती
जिदंगी कि इन पहेलियों को
पलभर में सुलझा लू
और शांत चित से
जिदंगी व्यतित कर सकूँ
पर फिर भी इस सवाल में
कूछ आशा है कल की...
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