कली हो तुम
कल-कल करती सरिता सी तुम ,
मेरी नज़्म बन रही हो ,
मंद-मंद मुस्कान लिए मन
मग्न कर रही हो ,
अपने बदन की भीनी-भीनी ख़ुश्बू से
गुलशन तर कर रही हो ,
रूख हवाओ का पाकर
क्यों इतराती हो ,
स्वच्छ हो निर्मल हो फिर
अपनी...
मेरी नज़्म बन रही हो ,
मंद-मंद मुस्कान लिए मन
मग्न कर रही हो ,
अपने बदन की भीनी-भीनी ख़ुश्बू से
गुलशन तर कर रही हो ,
रूख हवाओ का पाकर
क्यों इतराती हो ,
स्वच्छ हो निर्मल हो फिर
अपनी...