// शाम एक कविता है //
शाम के धुँधलके में द्वार पर एक दिया टिमटिमाता है
दूर नदी पर घर लौटता मांझी अपनी नाव में गाता है
उड़ते पंछी नील गगन में उन्मत्त सा कलरव करते हैं...
दूर नदी पर घर लौटता मांझी अपनी नाव में गाता है
उड़ते पंछी नील गगन में उन्मत्त सा कलरव करते हैं...