शिकवा
ज़र्फ अब खौल रहा है अदावत में, खामोशियाँ तब्दील हो रही उकताहट में, ज़िन्दगी चल पड़ी है पथरीले रास्तों पे, हम यूँ ही जी रहे बौखलाहट में, शिकवा है तो सिर्फ अपने आप से, क्यों चुप रहे दिल की बगावत में |
© shweta Singh
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