कवि और कविता
मुझे ढूंढ रही हो....!
ओह,पर मैं मिलूंगा तुम्हें,
अपनी कविताओं में।
पर मैं मिलूंगा तुम्हें,
अपनी कहानियों में।
किसी पात्र या दृश्य के बीच में
बैठा रहूंगा मैं।
मगर, मुझसे मिलकर क्या करोगी?
क्या मेरी कविताओं को पढ़ने
और सहेजने के लिए तुम्हारे पास
वक्त है!
कभी वक्त चुराकर अपनी
अंतरात्मा से पूछना।
मुझे ढूंढ रही हो....!
ओह, पर मैं मिलूंगा तुम्हें,
अपने प्रेमियों के बीच।
जो अनायास ही मेरी कविता
को गुनगुनाया करते हैं।
जब तुम्हारे पास वक्त हो,
तब चली आना...।
मैं मिलूंगा तुम्हें शब्दों के साथ
खेलते हुए।
या, ढूंढ लेना मुझे मेरी
कविताओं में।
यकीं मानो, किसी कवि की
कविता ही उसकी सदन होता है।
क्या तुम उस सदन की सदस्य
बनना चाहोगी?
© कुमार किशन कीर्ति
ओह,पर मैं मिलूंगा तुम्हें,
अपनी कविताओं में।
पर मैं मिलूंगा तुम्हें,
अपनी कहानियों में।
किसी पात्र या दृश्य के बीच में
बैठा रहूंगा मैं।
मगर, मुझसे मिलकर क्या करोगी?
क्या मेरी कविताओं को पढ़ने
और सहेजने के लिए तुम्हारे पास
वक्त है!
कभी वक्त चुराकर अपनी
अंतरात्मा से पूछना।
मुझे ढूंढ रही हो....!
ओह, पर मैं मिलूंगा तुम्हें,
अपने प्रेमियों के बीच।
जो अनायास ही मेरी कविता
को गुनगुनाया करते हैं।
जब तुम्हारे पास वक्त हो,
तब चली आना...।
मैं मिलूंगा तुम्हें शब्दों के साथ
खेलते हुए।
या, ढूंढ लेना मुझे मेरी
कविताओं में।
यकीं मानो, किसी कवि की
कविता ही उसकी सदन होता है।
क्या तुम उस सदन की सदस्य
बनना चाहोगी?
© कुमार किशन कीर्ति