...

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तुम्हारी ही सूरत
तुम्हारी ही सूरत नज़र आ रही है,
निग़ाहों को हमने हटाकर के देखा,
तबस्सुम की सारी महक आ रही है,
घटाओं पे पेहरा लगाकर के देखा,

कई रोज़ पहले ये दिन कुछ अलग थे,
वफ़ाएँ भी ख़ाली यूँ गुमसुम पड़ी थी,
हसीनों की महफ़िल भी बेरंग थी, और,
सितारों की रौनक भी कुछ कम पड़ी थी,

वफाओं के घर मे चमक आ रही है,
के तुमसे ये दिल जो लगाकर के देखा,
तुम्हारी ही सूरत नज़र आ रही है,
निगाहों को हमने...