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एक हारा उलझा हुआ Insan 🙃 ..
रात के एक बज चुके थे नींद नही आ रही थी
जब भी आंखे बन्द करके सोने की कोशिश करता
तब तब मेरी कल्पनाएं एक अलग दिशा में धकेल रही थी
पर जब आंखे खोलता हूं तो ,,
खुद को देखता हूं ,,,अपनी हाथो की लकीरों को देखता हूं
और सोचता हूं कुछ तो लिखा होगा मेरी क़िस्मत में
पर फिर मैं अपने पापा को सोते हुए देखता हुं
तब सोचता हूं ,,,काश मैं पापा की सारी परेशानियों को
दूर कर पाता
काश मैं उनका अभी सहारा बन पाता,,
यही सब सोचते हुए मैं खुद को देखता हूं
तो मैं खुद को हारा हुआ पाता हूं ,,
वो हारा हुआ इंसान जिसने बहुत कोशिश की
पर हर बार उसके हाथ नाकामयाबी ही लग रही थी
सच कहूं तो मैं खुद को हारा हूं इंसान मानता हूं
और हारा कैसे ,, हालात और परिवार से
पर हालात और परिवार से कोई कैसे हार सकता है
हार सकता है जब आपको उम्मीद हो की उस...