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"दिल को छुआ जरूर था"

© pG” दिल को छुआ जरूर था "

एक खूबसूरती से चेहरे ने दिल को छुआ जरूर था,
मेरी आंखों में उसके हुस्न का तैरता हमेशा एक नूर था,
एक खूबसूरती के चेहरे ने दिल को छुआ जरूर था।
यूं ही कहीं हम मिले थे, चलते फिरते राहों में,
पता नहीं कैसे यह स्थिर नजरे, जाके झूली थी उसकी बाहों में
उस दिन तो दिल में जैसे छाया कोई सुरूर था,
एक खूबसूरती के चेहरे ने ……….।


नजरें मेरी, बाहों में उसके टंगी झूल रही थी ,
यादों की कोशिकाएं आगे की राह भूल रही थी,
अचंभा तो तब हुआ,
जब नजरों ने देखा उसे,
कमबखत, उसकी नजरें हमें पहले से ही घूर रही थी,
सांसे तो घुली थी, बस तन ही दूर था,
एक खूबसूरती के चेहरे ने……..।।


मुड़ कर देखा तो भटका मुसाफिर था,
जीवन से पिछड़ा हुआ काफिर था,
पर, माशूका से मैंने हर ख्वाब जोड़ दिया था,
घंटों की दूरी मिनटों में तोड़ दिया था,
बस चाहत थी कि एक valancy उधर से जुड़ जाए,
बस चाहत थी एक इलेक्ट्रॉन उधर से मिल जाए,
तो सह- संयोजक के बंधन में हम भी बंध जाए,
उस चांदनी रजनी में मैं घुमा मिलो दूर था,
एक खूबसूरती के चेहरे ने………।।


अगली भोर मैं तबस्सुम से रोपा हुआ था,
बंधन के ख्वाब को फूलों में संजोया हुआ था,
पर अचानक ही सारे पंख कट गए थे,
ख्वाबों को मेरे वो वहीं पटक गए थे,
नजरें जो छोड़ी थी उसने वह अब आगे नहीं बढ़ी है,
सब कुछ पीछे है, आगे केवल यह घड़ी है,
टूट गया है सब कुछ, पर कल भी मुझको गुरूर था,
एक खूबसूरती के चेहरे ने, दिल को छुआ जरूर था।।

~प्रकाश गोविंद