...

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ग़ज़ल
बात कड़वी थी मगर वो कह गए
दिल पे पत्थर रख के हम सब सह गए

मिल गया हमको ख़ुदा का जब सुराग़
खोजने तब उसको तह-दर-तह गए

हम जहाँ थे हैं वहीं पर आज भी
तुम ठिकाने ही बदलते रह गए

जिन क़िलों पर नाज़ था तुमको बहुत
देखते ही देखते सब ढह गए

बच गए गिर्दाब में थे जो फंसे
जो किनारों पर खड़े थे बह गए

रास्ता देते गए हम सब को ही
सबसे पीछे हम "सफ़र" में रह गए
© -प्रेरित 'सफ़र'