...

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मुक्त हूं !
ध्याता ही सर्वोच्च शक्तिमान है
है अजर, यह गर्व ही अभिमान है!

भीतरी लौह क्यों ध्रुवित है?
तपोभूमि की माटी पर संकुचित है !

धैर्य का वेग जो है बढ़ रहा
निस्तभ्ध है बुद्धि, यह विवेक भी कह रहा !

आलोचना का कष्ट तुम में बस गया
क्या बाजाओं का बल इस से घट...