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कर्मचारी -नौकरी करने वाले
निजी कंपनी में जो नौकरी करता
उनका रहता हाल बुरा
चिंता सताती नौकरी की हमेशा, भविष्य भी होता अंधकार भरा।।

बड़ी-बड़ी कंपनी कुछ अच्छी होती
कर्मचारियों का रखती ख्याल पूरा
फिर भी डर तो बना ही रहता, कोरोनाकाल ने दे दिया सबक बड़ा।।

मंहगाई हर दिन बढ़ती जाती
बॉस तनख्वाह पर देते आंख दिखा
सुख-चैन सारा चला है जाता, जीवन हो जाता नीरस बड़ा।।

समय-पाबंद होती ठेकेदार की नौकरी
लेते, बीच में ही पिंड छुड़ा
गया कॉन्ट्रैक्ट तो क्या कर सकते, वो खुद को पाता बीच मझधार खड़ा।।

रिश्वत चलती इसमें भी अब
ये काम न रहा आसान बड़ा
सालभर की एक नौकरी की खातिर, छः माह करता बेगार भला।।

दया की नौकरी उसकी होती
चापलूसी निभाती रोल बड़ा
ऊंच-नीच कुछ हो भी जाती तो, हो दयनीय स्थिति में कॉन्ट्रेचुअल स्टाफ खड़ा।।

सरकारी कभी वो हो नही सकता
अब नियम सरकार ने ये समाप्त किया
निजी वाले भी उन्नति पाते, रहता कॉन्ट्रैक्चुअल स्टाफ सदा असुरक्षित बड़ा।।

सुरक्षित रहते सरकारी
निजी कर्मचारियों का हाल बुरा
कॉन्टैक्चुअल स्टाफ की क्या बताएं, बन दया का पात्र वो आज खड़ा।।