...

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धृतसभा
रिश्तों की हवस यहां
मगर रिश्तों की मर्यादा नहीं।
जब टूट जाते हैं रिश्ते
फिर उसका सरेआम चीरहरण होता है।
लगाए जाते हैं ठहाके धृतसभा में
कितना सुंदर शरीर था
कितने सुंदर रंग के वस्त्र थे पहने कभी
कितनी बार मिले थे यहां वहां
किस तरह छुआ था उसने
उसकी वासना जागी थी
वाह तुम निर्दोष रहे
इसी पटल पर इसी सभा में
कुछ धृतराष्ट्र तो
कुछ दुर्योधन बन जाते हैं।
मर्यादा रिश्तों की तार तार
और किसी का खिलता हुआ चेहरा
देखो कलंकिनी हो तुम
उठती हैं ना उंगलियां
और सभा मे सभी के
चेहरे खिल जाते हैं
क्या बहन क्या दोस्त
सभी की आवाजें शामिल हैं।
रिश्ते का चीरहरण भारी है।
धृतसभा अभी भी जारी है।
©️®️✍️ranjitsingh स्वरचित
© ranjitsingh